नई दिल्ली/सर्वोदय:- भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के बीच AIMIM प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने जिस तरह से पाकिस्तान के खिलाफ सख्त और राष्ट्रवादी रुख अपनाया है, उसने पूर्व राजनयिक और नेता सैयद शहाबुद्दीन की याद दिला दी है। ओवैसी का यह बदला हुआ रूप न सिर्फ उनके आलोचकों को चौंका रहा है, बल्कि देश भर में उनकी राष्ट्रभक्ति भरी भावनाओं की सराहना भी की जा रही है।
ओवैसी का राष्ट्रवादी स्टैंड: पाकिस्तान और तुर्किये पर तीखा हमला
पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद ओवैसी ने एक स्पष्ट और दमदार बयान दिया। उन्होंने न केवल पाकिस्तान की आलोचना की, बल्कि उसके सहयोगी देशों जैसे तुर्किये पर भी हमला बोला। तुर्किये द्वारा इराक और सीरिया में कुर्द उग्रवादियों पर बमबारी का हवाला देते हुए ओवैसी ने कहा: “जब तुर्किये विदेशी जमीन पर आतंकियों को खत्म कर सकता है, तो भारत की सुरक्षा नीति पर सवाल उठाने का उसे कोई अधिकार नहीं है।”
सर्वदलीय बैठक में दिखी सक्रियता, सरकार की तारीफ
सर्वदलीय बैठक के दौरान ओवैसी ने न केवल ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सराहना की, बल्कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से यह आग्रह भी किया कि टीआरएफ (The Resistance Front) को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन घोषित करवाने के लिए संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका से अपील की जाए। उन्होंने कहा: “हमें पाकिस्तान को फिर से FATF की ग्रे लिस्ट में डलवाना चाहिए।”
कुरआन की आयत पर पाकिस्तान को घेरा
पाकिस्तान द्वारा अपने अभियान को ‘बुनयान-अल-मरसूस’ नाम देने पर भी ओवैसी ने तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि यह नाम कुरआन की एक आयत से लिया गया है, लेकिन पाकिस्तान उस आयत के सच्चे अर्थ को ही नहीं समझता। “झूठी सरकारें और फौजें इस्लाम के नाम का भी गलत इस्तेमाल कर रही हैं। जब ईस्ट पाकिस्तान में उन्होंने मुसलमानों पर ही गोलियां चलाईं, तब कहां गई थी उनकी ‘दीवार’?”
शहाबुद्दीन की याद: जब बांग्लादेश के लिए बन गए थे ‘मानद राजदूत’
ओवैसी के इस स्टैंड ने 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय के सैयद शहाबुद्दीन की भूमिका की याद ताजा कर दी। उस वक्त शहाबुद्दीन वेनेजुएला में भारत के चार्ज डी अफेयर्स थे और उन्होंने बांग्लादेश के समर्थन में तीन बार वेनेजुएला की संसद से प्रस्ताव पारित करवाए थे।
उन्होंने स्थानीय चर्च, मजदूर संगठनों और समाज के सभी वर्गों को भारत के पक्ष में एकजुट किया था। उनकी भूमिका के लिए ‘द डेली जर्नल’ ने उन्हें ‘Honorary Ambassador of Bangladesh’ तक कह दिया था।
शहाबुद्दीन ने बाद में कहा था कि:
“1971 ने भारतीय मुसलमानों को यह एहसास दिलाया कि पाकिस्तान उनके लिए कोई भविष्य नहीं है, बल्कि भारत ही उनका घर और भविष्य है।”