सर्वोदय न्यूज़:- सावन का महीना, भगवान शिव की आराधना और भक्ति का प्रमुख पर्व है। इस पवित्र समय में शिवभक्त व्रत-उपवास रखते हैं, जलाभिषेक करते हैं और अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। आमतौर पर रावण को शिवभक्तों में सर्वोच्च माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा भक्त भी था जिसने भक्ति की सारी सीमाएं लांघ दी थीं?
यह भक्त कन्नप्पा नयनार था – एक ऐसा साधारण शिकारी, जिसने भगवान शिव को अपनी एक नहीं, बल्कि दोनों आंखें अर्पित करने का निश्चय कर लिया था। कन्नप्पा, जिन्हें कन्नप्पा नयनार कहा जाता है, दक्षिण भारत के तमिल शैव संतों (63 नयनारों) में से एक थे। उनका जन्म एक शिकारी परिवार में हुआ था और उनका असली नाम था थिन्नन। उन्होंने परंपरागत पूजा पद्धति नहीं सीखी थी, लेकिन उनका श्रद्धा और प्रेम से भरा मन उन्हें शिवभक्ति के मार्ग पर ले आया।
आंध्र प्रदेश स्थित प्रसिद्ध श्रीकालहस्ती मंदिर कन्नप्पा की कथा से गहराई से जुड़ा है। थिन्नन जंगल में शिकार करते हुए इस मंदिर के पास पहुंचे और वहाँ शिवलिंग को देखकर उन्हें भक्ति की अनुभूति हुई। पूजा की विधियां न जानते हुए भी वे रोज शिवलिंग पर मांस, पत्ते, फूल और अपने मुंह का जल अर्पित करते थे।
एक दिन कन्नप्पा ने देखा कि शिवलिंग की आंख से रक्त बह रहा है। वे घबरा गए और पहले तो जड़ी-बूटियों से इलाज करने लगे। जब खून नहीं रुका, तो उन्होंने बिना सोचे-समझे अपनी एक आंख निकालकर शिवलिंग पर अर्पित कर दी। लेकिन खून बहना नहीं रुका। तब उन्होंने अपनी दूसरी आंख निकालने का फैसला किया और जैसे ही वह उसे अर्पित करने जा रहे थे, तभी भगवान शिव प्रकट हो गए और उन्हें रोक लिया। शिवजी उनकी निस्वार्थ भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें मोक्ष प्रदान किया। साथ ही उन्हें शैव परंपरा के महान संतों में शामिल किया।



